जानिए, हमारी सेहत को कैसे प्रभावित करता है मानसिक स्वास्थ्य?

जानिए, हमारी सेहत को कैसे प्रभावित करता है मानसिक स्वास्थ्य?

सेहतराग टीम

भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों को कई तरह की समस्याएं हो रही हैं। कई लोगों को शारीरिक बीमारी हो रही है तो कई ऐसे लोग हैं जो मानसिक समस्या से पीड़ित हैं। शारीरिक बीमारी का इलाज तो किसी तरीके से हो जा रहा है लेकिन मानसिक समस्या लोगों पर ज्यादा प्रभाव छोड़ रही है। ये हमारे सोचने, समझने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, मानसिक स्वास्थ्य से किसी व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का अहसास होता है, उसे यह भरोसा होता है कि वह जीवन के सामान्य तनाव का सामना कर सकता है और समाज के प्रति अपना योगदान देने में सक्षम होता है।

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एक्सपर्ट के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य को दो भागों में बांट सकते हैं। पहला, न्यूरोटिक समस्या और दूसरा साइकोटिक समस्या। न्यूरोटिक समस्याओं में अवसाद, चिंता या घबराहट और फोबिया आदि आते हैं, जबकि साइकोटिक समस्याओं में सिजोफ्रेनिया, पैरानॉयड डिसऑर्डर आदि आते हैं।

सिजोफ्रेनिया क्या है?

यह एक ऐसा विकार है, जो व्यक्ति की स्पष्ट रूप से सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करता है। इस स्थिति में व्यक्ति कल्पना और वास्तविकता में अंतर नहीं कर पाता। इसके लक्षणों में सोचने या बोलने में असामान्यता, व्यवहार में असामान्यता, रोजमर्रा की सामान्य गतिविधियों में रूचि खो देना (जैसे- सामाजिक अलगाव, जीवन से संबंधित योजनाएं बनाने में परेशानी) आदि शामिल हैं।

पैरानॉयड डिसऑर्डर क्या है?

आमतौर पर संदेह करना एक सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है, लेकिन जब यह किसी की आदत बन जाए और वह हमेशा संदेह से घिरा रहे, तो यह पैरानॉयड पर्सनैलिटी डिसऑर्डर का संकेत हो सकता है। इस समस्या से ग्रसित मरीज भ्रम में रहने लगते हैं। छोटी-छोटी बातों पर बेवजह शक करना और शक का पक्के विश्वास में बदल जाना, पैरानॉयड पर्सनैलिटी डिसऑर्डर के लक्षण हैं। 

मानसिक स्वास्थ्य हमारी सेहत को कैसे प्रभावित करता है?

मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कुछ समस्याएं, जैसे- अवसाद की वजह से हमें कई प्रकार की शारीरिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। अगर अवसाद लंबे समय तक बना रहे, तो यह हृदय संबंधी रोगों का खतरा भी बढ़ा देता है। क्या स्ट्रेस (तनाव) जिंदगी के लिए घातक हो सकता है? इस सवाल के जवाब में डॉ. संजीव कहते हैं, 'स्ट्रेस जानलेवा नहीं होता है, डिप्रेशन (अवसाद) जानलेवा हो सकता है। स्ट्रेस में आम तौर पर सुसाइडल थॉट (आत्महत्या के विचार) देखने को नहीं मिलते हैं। स्ट्रेस में आदमी आत्महत्या नहीं करता है, स्ट्रेस जब आगे बढ़कर डिप्रेशन तक पहुंच जाता है, तब आत्महत्या करने की संभावना बढ़ जाती है।'

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, भारत में मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या सबसे अधिक है। संगठन ने एक अनुमान जताया था कि साल 2020 तक भारत की लगभग 20 फीसदी आबादी मानसिक बीमारियों से पीड़ित होगी। हालांकि इससे संबंधित कोई आंकड़ा अभी तक पेश नहीं किया गया है, लेकिन इतना तो तय है कि देश में मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में इस बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि जागरूकता की कमी के कारण ही मानसिक बीमारियों से ग्रसित कई मरीजों को अमानवीय व्यवहार का भी सामना करना पड़ता है।

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